प्रस्तुत कविता 'हे जग के स्वामी! ' हमारी पाठ्य पुस्तक कलरव -4 से ली गई है। इस कविता के रचयिता कवि श्री सोहन लाल जी है।इस कविता में कवि श्री सोहन लाल द्विवेदी जी ने प्रकृति को ईश्वर का स्वरूप मानकर उसकी महिमा अर्थात महात्म्य अनुपम वर्णन किया है। चमक रहा है तेज तुम्हारा, बनकर लाल सूर्य- मंडल, फैल रही है कीर्ति तुम्हारी , बन करके चांदनी धवल। चमक रहे हैं लाखों तारे, बन तेरा श्रृंगार अमल , चमक रही है किरण तुम्हारी , चमक रहे हैं सब जल- थल, हे जग के प्रकाश के स्वामी! जब सब जग दमका देना , मेरे भी जीवन के पथ पर, कुछ किरणें चमका देना। कवि-श्री सोहन लाल द्विवेदी कविता का अर्थ-प्रस्तुत कविता में कवि ईश्वर की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि कि आपका तेज सूर्य की लाल आभा बनकर चमक रहा है। कवि आगे कहते है कि आपका यश स्वच्छ चंद्रमा का प्रकाश बनकर सारे संसार में फैल रहा है। कवि कहते हैं कि आसमान में चमक रहे लाखों तारे आप ही का स्वच्छ श्रृंगार हैं। सारा संसार, जल और थल आप ही की किरण से प्रकाशित हैं। कवि ईश्वर की महिमा का वर्णन करते हुए आगे कहते हैं कि हे ! संसा...
जग के प्रकाश के स्वामी कौन है।
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